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नियम कानून

दफ्तर से घर वापसी के मध्य ATM से राशि निकालने हेतु बाइक को एक ATM के समीप पार्क किया और ATM के दरवाज़े पर आकर रुक गया l क्यूंकि कोई व्यकित पहले से ही अन्दर मौजूद था l इस इंतज़ार के दौरान ATM में प्रवेश हेतु नियम मानस पटल पर कोंधे और हेलमेट सर से उतर कर हाथों पर लटक गया ! इसी बीच एक महिला का आगमन हुआ और मेरे पीछे लाइन में लगने की बजाय वह मेरे से पहले प्रवेश करने की मंशा के साथ मेरे बगल में खडी हो गयी और जैसे ही एटीएम इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति ATM से हटा वह महिला दरवाज़ा खोल कर अन्दर जाने लगी तो मुझे टोकना पड़ा की “आप से पहले मेरा नंबर है” इस पर अन्दर घुसते हुए वह बोली की उसे जरा जल्दी है ! बिना किसी विनय भाव के कहे गए उसके ये शब्द मुझे अच्छे नहीं लगे और मुझे फिर से उसे टोकना पड़ा की “अगर किसी को जल्दी है तो इसका मतलब ये नहीं की नियमों को तोड़ दिया जाए”, इस पर वही बोली की मेरा चश्मा घर पर ही छूट गया है और जो ब्यक्ति अन्दर है उसी से कह के वह अपने पैसे निकलवा लेगी और अगर आप चाहो तो आप ही निकाल कर दे दो! मैंने कहा “पहले मेरा नंबर है इसलिए पहले मुझे पैसे निकालने दो” क्यूंकि अभी तक उसके शब्दों में

उधेड़बुन

Synus के लिए होम्योपथिक का इलाज चल रहा है तो इसी कारणवश कल शाम होम्योपथिक डॉक्टर के पास पहुंचे और अधिकांश भारतवर्ष की तरह ऐसी जगह पर पहुचते ही आपका नंबर लग जाता है बिना किसी पर्ची या कूपन के, बस ये नोटिस करना पड़ता है की कौन आपसे पहले आ रखा है और कौन आपके बाद आया है l अपने से पहले आये लोगों पर एक नज़र दौड़ा कर अपने फ़ोन पर मशगुल हो गए Zombie VS Plants गेम खेलने में l इसी बीच एक बुजुर्ग दम्पति आये जिनका नंबर मेरे बाद बनता है क्यूंकि में उनसे पहले आ रखा हूँ l बुजुर्ग दम्पति के आते ही मेरे से आगे की सीटें खाली हुयी और वो उस पर बैठ गए l अब मेरे अन्दर एक उधेड़बुन शुरू हो गयी की ये आये तो मेरे से बाद में है लेकिन मेरे से आगे बेठ गए है तो क्या मुझे इन्हें ये बताना चाहिए की आपका नंबर मेरे बाद में है या इनको इल्म होगा की हमसे पहले किसी और का नंबर है l इसी उधेड़बुन में कुछ और लोग डॉक्टर से परामर्श और दवाई लेके चले गए और बुजुर्ग लोग आगे आगे खिसकते चले गए l फिर वो समय भी आ ही गया जब मेरे से पहले आये आदमी का नंबर आ चूका था और उसके बाद मेरा नंबर आना था लेकिन मेरे से पहले बुजुर्ग दम्पति अन्दर जाने का बे

रविवासरीय

रविवासरीय --------- सुबह पाँच बजे उठ कर प्रभात सैर को निकलेंगे और शनिवार को नींद के आगोश के कारण जो सुबह की सैर छूट गयी थी उस कसर की पूर्ति को ध्यान में रखते हुए कुछ ज्यादा भागदौड़ की जायेगी। साढ़े छे बजे तक वापस आकर नित्यक्रम से निवृत होकर चाय की प्याली के साथ समाचार पत्र पर खर्च होने वाले महीने की रकम को निचोड़ने को कोशिश की जायेगी। इस दौरान हर खबर पर दिमाग में कई बातें दौड़ेगी और उन सब बातों को किनारे रख कर पेट में दौड़ने वाले चूहों की संतुष्टि के लिए श्रीमती जी से नाश्ते का मीनू पूछेंगे और संतुष्टि के लिए कुछ विकल्प भी सुझायेंगे। ततपशचात केशों पर मेहँदी लगाने का आयोजन है और मेहँदी लगने के बाद एक आधी देखी हुयी फ़िल्म LUCY देखने का विचार है ताकि ये निष्कर्ष निकाला जा सके की फ़िल्म को 5 में से कितने सितारे दिए जा सकते है। इस बीच दोपहर के खाने का मीनू भी निर्धारित कर लिया जाएगा। खाने के बाद एक झपकी लेने का विचार है और फिर संध्या को अपने प्रम मित्र कुलदीप के साथ एक रेलवे स्टेशन की तरफ सैर पर जाते हुए अपने वर्तमान जीवन में घटित घटनाओं का आदान प्रदान करने का भी विचार है। संध्या सैर से वापस

बदमाश

जो आसानी से हासिल न हो पाए उसे पाने के लिए किये गए गलत शारीरिक या यांत्रिक तरीके को अख्तियार करने वाले को बदमाश कहते है. (बदमाश की ये मेरी अपनी परिभाषा है जो मैंने महसूस करी है) अब तक के जीवन के सफ़र में मेरा भी कुछ ऐसे लोगों से वास्ता, जान पहचान या सम्बन्ध कुछ भी कह सकते है पड़ा है जिन्हें लोग “बदमाश” कह के पुकारते है या समझते हैl बदमाशी के लक्षण अक्सर स्कूल समय से ही दिखने लग जाते है l अब ये कुदरती है या उचित मार्गदर्शन की कमी, में इस बारे मे असमंजस मे हूँ l हर किसी को सब कुछ तो हासिल नहीं हो सकता जैसा की धनी परिवार, अच्छी शक्ल सूरत, अच्छा दिमाग इत्यादि लेकिन बाल मन कहाँ समझता है ये सब और स्कूल के समय में यही अधिकतर की जरूरत होती है l बची खुची कसर सिनेमा पूरा कर देता है l कुछ बच्चे इस को समझ जाते है या इस लाइन में जाने का साहस नहीं उठा पाते है तो कुछ बस किसी भी कीमत पर हासिल करने की ठान लेते है और अपना प्रभुत्व ज़माने की खातिर अपनी शारीरिक और यांत्रिक क्षमता का दुरूपयोग करके कमज़ोर को अपना शिकार बना कर अपना मतलब सिद्ध करते है और एक दो बार इस तरह की मनवांछित वास्तु पाकर इनके होंसले इतने