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Showing posts from April, 2016

गुरु या भगवान

पुस्तकों को हमेशा गुरु का दर्ज़ा दिया गया है। पाठ्यक्रम और उसके बाहर जितनी भी पुस्तकें पड़ी है सब ने एक ही सन्देश दिया है की... - ईमानदारी से जीवन व्यतीत करो। - सदैव सच्चाई का साथ दो। - अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाओ। इत्यादि। और माता पिता को भगवान का दर्जा दिया गया है। लेकिन आज के माता पिता समाज से इतना भयभीत है की  वह अपने बच्चों और शुभचिंतको को हमेशा यही सलाह देते नज़र आते है की जमाना ख़राब है और... - अगर गलती आप की नहीं भी हो तो बहस करने की जरूरत नहीं माफ़ी मांग कर मामला ख़त्म कर दो। - ईमानदारी घर के अंदर तक ही सिमित रखो, बाहर मौके के हिसाब से चतुराई से काम लो। - कभी किसी को अपनी सच्चाईयों से अवगत मत कराओ। इत्यादि। अब फैसला आपके विवेक पर है की गुरु की बात माने की भगवान की।

iphone

जैसी ही रेलगाड़ी अपने आखिरी स्टेशन के प्लेटफार्म पर पहुंची, लोगों में पहले उतरने की हड़बड़ाहट और जद्दोजहद शुरू हो गई। परिवार सहित होने के नाते मैंने आखिरी में ही उतरना मुनासिब समझा और जब लगभग सब लोग उत्तर चुके थे में भी उतरने के लिए आगे चलने लगा तभी अकस्मात् एक सीट पर गिरे हुए फ़ोन पर नज़रे पड़ी। पहली नज़र में भांप गया की उस सीट पर बेठे हुए शख्स की पेंट से फिसल कर फ़ोन सीट पर ही गिर गया और वो जल्दबाज़ी में उत्तर चूका है। उठाने पर माइक्रोमैक्स मॉडल का कीपैड फ़ोन जो की हाल ही में लिया हुआ प्रतीत हुआ जिसकी कीमत लगभग 2-3 हज़ार होगी, उसको अपनी जेब के हवाले किया और बस स्टेशन की तरफ अग्रसर हो गया इस उम्मीद में की उसका मालिक भी उधर ही होगा और फ़ोन खोने की चेतना पर आसपास से ही फ़ोन करेगा। लगभग 10 मिनट के अंतराल के बाद ही उस फ़ोन पर "प्रमोद" नाम से फ़ोन आया और फ़ोन खोने की बात कही। नज़दीक ही एक पेट्रोल पंप था जहाँ पर उनसे मुलाक़ात तय हुयी और 5 मिनट में ही एक बुजुर्ग एक नवयुवक के साथ मिले। फ़ोन मिलने पर उनकी ख़ुशी को मैंने अच्छे से महसूस किया शायद ये फ़ोन उनके लिए किसी iphone से कम नहीं था। धन्यब