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चुनावी फसल

हम अपनी सूझ बूझ से अपने क्षेत्र की परिस्तिथियों को ध्यान में रख कर अपने खेतों में फसल बोते है और उसी के अनुसार उम्मीद भी रखते है। माना कि एक बार हम अपनी सूझ बूझ और परिस्तिथियों का आंकलन सही से न कर पाए लेकिन अगली बार फिर हम वही निर्णय ले तो ये सीधे तौर पर हमारी निर्णय लेने की क्षमता पर एक प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है और हम ही अपनी सफलता और विफलता के जिम्मेदार माने जाने चाहिए। यहाँ पर फसल से मेरा तात्पर्य नेताओं से है जिन्हें हम बहुत सूझ बूझ से चुनते है और एक बार नहीं बार बार चुनते है। हर बार अपनी चयनित नेता रुपी फसल के नष्ट या भ्रष्ट होने पर हम खुद की गलतियों  से पल्ला झाड़ कर नेताओं या फसल को दोष मढ़ते फिरते है। दूसरे में गलतियां निकलते समय हमें ये नहीं भूलना चाहिए की हमारे पास अपने भी गिरहबान हैं। वोट देते समय बस ईमानदारी से इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि हमारे राज्य की प्रगति और विकास में हमारी अपनी प्रगति और विकास छुपा है और अपनी स्वार्थ वाली प्रगति और विकास में राज्य का विनाश। इस बार के बीज ईमानदारी के साथ राज्य के विकास और प्रगति लिए बोये।