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Showing posts from April, 2018

अजकाले की नोनी

क्या आप लुखूँ थे पता च की अजकाले नोनियू दगड़ क्या परेशानी च? तुमथे एक नोनी बजार म दिख्या। तुमुल वीन्थे मुंड बटे की खुटा तलक दयाख। तुमुल वीन्की छाती दयाख, तुमथे मस्त लगिन। तुमुल वीन्का पैथर दयाख, तुमथे मज़ा आ ग्या। तुमुल वीन्की कमर दयाख, तुमथे नशा चेड़ गया। व जरा उन्दू ख़ूणे झुक, तुमुल कनख़यूल वीन्का भीतर त दयाख। राति स्वीणो म तुमुल व अपणा बिस्तरम दयाख। क़तगे बणी का पोजम तुमुल वीन्का दगड़ अपथे दयाख। तुमरी भूख शांत हवेगे। अब तुम वीन्थे भूली ग्यो। हेंका दिन, तुमरी भुल्ली अर तुमरी ब्वारी गेनी वे बज़ार म। तुम त निछाई, पर तुमरी जगा आज क्वी और छाई। वेल भी वी दयाख, ब्याली जु तुमुल दयाख छाई। क्या याद च तुमथे की ब्याली तुमुल क्या दयाख छाई? और जण चाणा छौ, अजकाले की नोनियू दगड़ क्या परेशानी च?

आशिफ़ा

तो आशिफ़ा सबकी बेटी थी और उसके साथ हुए अत्याचार से सब आहत है, आपकी सोच और भावना बिल्कुल जायज़ है। लेकिन इस पुरुष प्रधान देश मे बलात्कारी किसी का बेटा नही है क्या...? वो किसी मशीन से उत्पन्न हुआ पुरुष मात्र का शरीर भर है क्या...? सवाल ये उठता है कि कसूरवार कौन है,  वो बलात्कारी जिसने ऐसा घृणित कार्य किया या उसका परिवार जिसने संस्कारों के रूप में उसके अवचेतन मन मे गलत कार्यों का सही से डर नही बिठाया, जिससे  उसके अंदर ऐसा अपराध करने की सोच उत्पन्न हुई, या फिर हमारा समाज जिसने उसके अंदर ऐसी लालसा उत्पन्न कर दी कि उसको इस अपराध के पीछे के परिणामों को भी पूर्णतया नज़रअंदाज़ कर दिया। अगर इसके पीछे वह स्वयं या उसके संस्कार है तो समाज के द्वारा उठाये जाने वाली आवाज़ जायज़ है लेकिन अगर इसमें समाज का योगदान भी सम्मिलित है तो समाज को कोई हक नही की वो सिर्फ बलात्कारी की सज़ा की मांग करे, समाज की मांग उन सब क्रियाकलापो को बंद करने की मांग दुगुनी आवाज़ के साथ उठाने की जरूरत है जो ऐसी घटनाओं की जन्मदाता है। वरना ऐसी घटनाओं में दोषी की सज़ा से ही सार्थकता सिद्ध नही हो जाती बल्कि ऐसी घटनाओं क

प्रकृति

भविष्य के लिए क्या जरूरी है? स्वास्थ्य। और स्वास्थ्य के लिए? शुद्ध हवा, जल, भोजन। ये सब कहाँ के मिलता है? प्रकृति से। प्रकृति के लिए आप क्या रहे हो? कुछ नही। तो जब ये प्रकृति ही नही रहेगी तो जो योजना आपने अपने बच्चों के भविष्य के लिए बनाई है वो कैसे पूरी होगी? चलो मान लेते है कि एक पीढ़ी तो प्रकृति और झेल ही लेगी, लेकिन करेंगे तो प्रकृति के लिए आपके बच्चे भी कुछ नही, तो फिर आपके नातियों के भविष्य का क्या होगा? आपकी आने वाली पीढ़ी का क्या होगा? चलो ठीक है, माना की आप के पास समय नही की आप प्रकृति को संचित रखने मे समय दे पाओ, लेकिन उसको जिस से नुकसान पहुंच रहा है वो तो बंद कर सकते हो। पॉलीथीन, प्रदूषण, कचरा, केमिकल, बिजली की बजट...इत्यादि। अच्छा!! तो ये भी नही हो पायेगा, चलो ऐसा कोई तो होगा जो प्रकृति को संचित रखना चाहता है और उसको बढ़ाना चाहता है। तो उसका साथ दो, उन लोगों को सपोर्ट करो जो प्रकृति के लिए योजनायें बना रहे है। इन नेताओं में से छांटो उन्हें जो प्रकृति की चिंता करता है। जात-पात, धर्म, आरक्षण जैसी चीज़ों को सपोर्ट करने से बेहतर है उन कामों और

आस्था

हवलदार जगजीवन की भगवान के ऊपर बहुत आस्था थी और उनके जीवन मे होने वाली सारी अच्छी घटनाओं का सारा श्रेय भगवान को ही जाता। जब भी मौका मिलता वो मंदिरों के दर्शन और पूजा पाठ में समय व्यतीत करते। जिस दिन हवलदार जगजीवन को बीवी के गर्भवती होने की सूचना मिली उसी दिन होने वाली संतान के भविष्य की जानकारी हेतु वो पुजारी जी से जाके मिले। दिनों की गणना करके पंडित जी ने बच्चे के जन्मदिन का अनुमान लगाया और जगजीवन बाबू को कहा कि अमुक तारीख को अगर बच्चा पैदा होता है तो परिवार खुशियों से भर जाएगा, ये दिन बच्चे व पूरे परिवार के लिए बहुत भाग्यशाली है। आनेवाली खुशियों की राह तकते तकते आखिर वो दिन आने वाला था जिस दिन को बच्चे के जन्म को पण्डितजी ने पूरे परिवार के लिए भाग्यशाली बताया था।  लेकिन शायद जगजीवन बाबू के परिवार की किस्मत में कुछ और ही था, डॉक्टर के अनुसार बच्चे का जन्म ठीक पंडितजी के बताए दिन के अगले दिन का तय किया गया। भविष्य की चिंताओं से बचने के लिए जगजीवन बाबू ने कड़ा फैसला लिया और तय किया कि बच्चे का जन्म आपरेशन से उसी दिन किया जाएगा जिस दिन पंडितजी ने बताया है। अंधविश्वासी और पुराने विचारों

पार्टी समर्थक

मेरे इर्द गिर्द जितने भी लोग है चाहे वो वास्तविक जिंदगी में हो या फेसबुक, व्हाट्सएप्प जैसी वर्चुअल दुनिया मे, लगभग सबके सब किसी न किसी राजनैतिक पार्टी के समर्थक है। ज्यादातर लोगों को उस राजनैतिक पार्टी से किसी भी तरह का परोक्ष या अपरोक्ष रूप मे कोई फायदा नही है, लेकिन फिर भी उन्हें लगता है कि शायद जीने के लिए किसी पार्टी का समर्थक होना नितांत जरूरी है वरना वो किस बात को लेकर दोस्तों, रिश्तेदारों व जानकारों से नोक झोंक करेंगे। कोई तो पेंदा लेकर उनको चलना चाहिए, बीने खूंटे की गाय बन के जीवन निरथर्क है। फेसबुक और व्हाट्सएप्प की दुनिया मे बिना किसी राजनैतिक पार्टी के समर्थक बिना घुसना मानो मरुस्थल में जाने के बराबर हो। कुछ दिन पहले हुए उत्तर प्रदेश के उप चुनाव के बाद, नतीजे से पहले की रात काटना पाठक जी के लिए दूभर हो गया, बेचैनी और चिंता का आलम ये की रगो से पानी संभला न जाये और पसीना किसी फूटी टंकी से रिस्ता जाए। इसका कारण वो एक राजनैतिक पार्टी के समर्थक है और कल आने वाले परिणाम पर उनकी नाक की आन बान और शान टिकी थी। हालांकि परोक्ष या अपरोक्ष रूप में उनका पार्टी से कोई लेन

धुंधली यादें

हमारी क्रिकेट मंडली बेसब्री से उस लड़के का इंतज़ार कर रही थी जो अपने पापा की परचून की दुकान में उनका हाथ बंटा रहा था। हमारे द्वारा किये गए जल्दी चलने के कई गुप्त इशारों के बाद खेलने की ललक और सही मौके को देखकर उसने हिम्मत जुटा कर अपने पापा से कहा "पाप में बेट बॉल खेलने जाऊँ?" कड़वे शब्दों को शहद में लपेटते हुए उसके पापा बोले " अगर तुमने ये बेट बाल खेल कर सचिन बनना है तो जाओ लेकिन अगर सचिन नही बन सकते तो क्यों इस पर समय बर्बाद कर रहे हो" उसके पिताजी की विचारधारा का बोध होते ही हम बिना अधिक समय गवाए खेलने चल पड़े। लगभग 10 वर्ष बाद, वर्तमान में वह लड़का एक साधारण सी नौकरी के लिए पलायन कर चुका है उसके पिताजी काफी समय तक उस दुकान को उसी अवस्था मे चलाने के बाद चल बसे और फिलहाल उसका बड़ा भाई उस दुकान को संभाल रहा है। न तो उसके पिताजी खुद व्यापार में अम्बानी सरीखे बने और न ही अपने बच्चों को बना पाए, लेकिन बच्चों के कई अरमान उनके पिताजी जी की हिदायतों की भेंट चढ़ गए। बहुत से बुजुर्ग है जो हिदायतें तो बाँटते फिरते है पर शायद ये भूल जाते है कि वो हिदायतें पहले खुद पर लागू होती