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Showing posts from May, 2018

प्रयास

लाल बत्ती की दूसरी तरफ रुके हरे-पिले रंग के शेयरिंग ऑटो को निहारते हुए मन ही मन वो एक सीट मिल पाने की उम्मीद के साथ बार बार अपने फ़ोन मे बढ़ते और ऑफिस के लिए कम होते हुए समय को देख रहा था। जैसे ही लाल रंग फिसल कर हरे रंग पर रुका मैंने भी अपनी बाइक को आगे बढ़ा दिया, उस युवक ने अपना हाथ रुकने के लिए दिया जो की मेरे पीछे आते ऑटो के लिए था लेकिन मैंने अपनी बाइक उसके सामने रोक दी, नज़रे मिली उसने पूछा सेक्टर 62 नोएडा तक छोड़ दोगे? मैंने कहा चलो। कुछ आगे चल कर पूछा की नोएडा में असल में कहाँ जाना है तो जवाब "फोर्टिस हॉस्पिटल" मिला। हालाँकि भारी यातायात की वजह से मैंने उस रास्ते से चलना बंद कर दिया था और एक थोड़ा लंबा लेकिन कम ट्रेफिक वाला रास्ता ढूँढ लिया था। उसके गंतव्य को जान कर सोचा चलो इसी बहाने पुराने रास्ते को एक बार फिर निहार लिया जाए। फोर्टिस हॉस्पिटल पर पहुँच कर सेवा स्वरूप धन्यवाद अर्जित किया आगे निकल चले। रोमांचक बात ये रही की, उसको पता है की उसने रुकने के लिए मुझे हाथ नही दिया था और मुझे भी पता है की उसने मुझे रोकने के लिए हाथ नही दिया था लेकिन उसको ये नही पता की ये बात मुझ

स्थिरता

इस दुनिया में स्थिर कुछ भी नही, आज जो हमें सही लगता है कुछ समय पशचात वही गलत लगने लग जाता है। ऐसे मे जब हम अपनी जुबान का मान खुद ही नही रख सकते तो दूसरों से कैसे उम्मीद रख सकते है। समय और परिस्तिथियाँ आपके अपने से किये गए वादों को ही बदल देती है। एक नज़र... बचपन में जो करेला हमें फूटी आंख नही सुहाता था और भगवान से शिकायत थी की क्या सोच कर इसे सब्ज़ी बनाया, आज वही करेला हमारा प्रिय है। दूरदर्शन के समय से जिन समाचारों ने मनोरंजन में खलनायक की भूमिका निभाई, आज टीवी सिर्फ उन्हीं समाचारों के लिए देखा जाता है। ब्रश करना, नहाना कपड़े बदलना इत्यादि नित्यक्रम के ये कार्य हमेशा से फालतू के कार्य लगते थे, आशिक़ी का भूत चढ़ा नही की वही सब कुछ  एक दिन मे दो-दो करने पर भी कम लगता है। जिस तीव्र गति से वाहन चलाने में रोमांच महसूस होता है, आज वही तीव्रता मौत का निमंत्रण लगता है। जिन गानों पर कभी पाँव थिरकते थे, आज वही गाने फूहड़ लगते है और जिन पुराने गानो को सुन कर कान पक जाते थे, आज वही गाने असली संगीत प्रतीत होता है। जो स्कूल हमेशा से बोझ महसूस होता था, वही आज अविस्मरणीय यादों का पिटारा है। जिन मार-