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Showing posts from August, 2018

MP3 (भाग - 3)

सोमवार का सूर्य अपने साथ अनगिनत ललिमाओं और आकांक्षाओं के साथ उदय हुआ। समय से काफी पहले स्कूल पहुँचे, हिम्मत नही हुई की रास्ते में जाकर देखें की सुमन आ रही है की नही। वो आई और प्रार्थना लाइन मे उसकी एक झलक दिखी और किसी तरह का कोई भाव नही दिख। मिश्रित भाव हमारे दिल-दिमागों मे कौंधे। पहला पीरियड शुरू हुआ और हम तीनो परिणाम की आरज़ू मे खुद को नार्मल रखने की कोशिशों से जूझ रहे थे। कुछ देर बाद देखा की सुमन स्कूल की दहशत कही जाने वाली गुप्ता मैडम के साथ प्रिंसिपल के कक्ष की तरफ बढ़ रही थी। अनहोनी की आशंका से हम तीनों का दिल डूबा जा रहा था, पर एक उम्मीद की किरण ये भी थी की शायद किसी अन्य कार्य हेतु वो प्रिंसिपल कक्ष में गए हो। जल्द ही एक बच्चा हमारी क्लास में आया और हम तीनों को प्रिंसिपल कक्ष में बुलावे की बात कह गया। शरीर सुन्न और शरीर में उगे हुए बाल और भविष्य में उगने वाले बाल भी त्वचा के अंदर खड़े हो गए। आस-पास की जगह और लोग किसी विचित्र ग्रह से महसूस होने लगे, शरीर के मसानों ने शर्त लगा कर पसीना उगलना शुरू कर दिया। कुछ क्षणों मे हमने खुद को प्रिंसिपल कक्ष में पाया, जहाँ एक औ

MP3 (भाग - 2)

बात कायदे के साथ-साथ प्रकृति के संतुलन को ठीक करने की भी थी। हमारे पास तो कोई विकल्प था नहीं तो काफी सोच विचार के बाद ये तय हुआ की एक पत्र लिखा जाए और उस से पुछा जाए की आप किस को पसंद करते हो। निर्णय तो ले लिया गया पर अब पत्र कैसे लिखा जाता है ये समस्या खड़ी हो गई। सुनील ने मोर्चा संभाला और बोला तेरी लिखाई अच्छी है तो लिखेगा तू और लिखना क्या है ये में बताऊंगा बाकी पत्र को सुमन तक पहुचाने का काम धर्मेन्द्र का होगा। फैसला हो गया और पत्र लिखा गया जो कुछ इस तरह था की.... प्यारी सुमन,  आप हमको बहुत अच्छी लगती हो और आपकी मुस्कान तो उस से भी ज्यादा। हम तीनो को आप से प्यार हो गया है और हमें लगता है की आप भी हमसे प्यार करती हो, लेकिन हमें ये नहीं पता की आप हम में से ज्यादा प्यार किस से करती हो। अगर आप हमें बता दोगी की आप हम से किसे ज्यादा प्यार करती हो बाकी के दो बीच में से हट जायेंगे। धन्यवाद! आपके प्रेमी (नाम नही लिखा था लेकिन सुनील ने अपनी कला का परिचय देते हुए एक दिल बनाया और उसको आर-पार करता हुआ एक तीर भी बना डाला।) पत्र लिखने के बाद तय हुआ की धर्मेंद्र स

MP3 (भाग - 1)

दिल्ली के सरकारी स्कूल मे सातवीं कक्षा के B सेक्शन मे चौथा पीरियड चल रहा था और उसी कक्षा की आखिरी सीट पर बैठे हुए हम तीन दोस्त (सुनील, धर्मेंद्र और मैं) बड़े ही ध्यान से कक्षा मे चल रहे विषय से बहुत दूर हाल ही मे रिलीज़ हुई 'हम' फ़िल्म में अमिताभ बच्चन द्वारा बोले गए डायलॉग "दुनिया में दो तरह के लोग होते है" की विवेचना में मग्न थे। तभी नज़र सातवी A की कक्षा की तरफ गयी और पाया की "सुमन" हमारी तरफ देखकर मुस्कुरा रही है। पूछो या न पूछो बता देता हूँ की "सुमन" पूरे स्कूल की क्रश थी और "विशाल" उस पर बुरी तरह मोहित था, लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद भी जब दाल नही गली तो फिर उसने अपनी कोशिशों को विराम देकर इस रिश्ते को भाई-बहन का रूप देकर खत्म कर दिया। जी हाँ वही "सुमन" हमारी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी, जिसकी हमने कल्पना भी नही की थी और इसी के चलते उसकी इस हरकत को हमने बहुत ही साधारण रूप में लिया। लेकिन जब वही मुस्कुराहट हमे लंच के बाद दुबारा देखने को मिली, दूसरे दिन भी और तीसरे दिन भी तो हम तीनो को कुछ-कुछ होने लगा। हम तीनो

गूँगा समाज

रोजाना की तरह पेट्रोल भरवाने के लिए पंप पर लाइन में लगा और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगा, तीन मोटरसाइकिल मेरे से पहले थी और मेरा चौथा नंबर। लाइन वालों मे से पेट्रोल एक मोटरसाइकिल का भरा जाता तो साइड से आकर दो भरवा के चले जाते, जब तक मेरा नंबर आता तब तक साइड से आकर पाँच लोग पेट्रोल भरवा चुके थे और छठा भरवा रहा था। अटेंडेंट को बोला की जो साइड से आते है उनको पेट्रोल क्यों देते हो, तो वो बोला की "अब हम किस किस से झगड़ा करे, हर कोई लड़ने के लिए तैयार होता है, इसलिए हमने बोलना ही बंद कर दिया, जिसको दिक्कत होगी खुद बोलेगा"। मैंने कहा की "फिर तो लाइन मे लगने का कोई फायदा ही नही है, जब आपने सबको पेट्रोल दे देना है, चाहे वो लाइन मे हो या नही। अगली बार से मे भी लाइन में नही लगूँगा" कल फिर उसी पेट्रोल पंप पर पहुँचा, चार लोग लाइन पर थे, हिचकते हुए साइड से लाकर मोटरसाइकिल सबसे आगे वाले के साथ खड़ी कर दी और तुरंत ही पेट्रोल भर दिया गया। न तो अटेंडेंट ने कुछ बोला न ही लाइन में लगे लोगों ने। सब कुछ सामान्य रूप से निपट जाने के बावजूद में खुद को असामान्य महसूस कर रहा था, मेरी अंतर