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कर्म का फल

हमारे आस-पास हो रही गाली-गलौच, चोरी-डकैती, लूट-पाट, धोखा-धडी,  हत्या, खुदखुशी, बलात्कार जैसी घटनाओं के लिए दोषी कौन...? हमारे अपने कर्म? या हमारे पूर्व-जन्म के कर्म? ….…………………………… एक मानव जब जन्म लेता है तो बिल्कुल खाली होता है। धीरे-धीरे जिस तरह की बातें/घटनायें उसे अपने पास घटित होती हुई दिखाई और सुनाई देती है वो उनको अपनी इंद्रियों के माध्यम से अपने अंदर भरने लग जाता है। घर का वातावरण। माँ-बाप, भाई-बहन, चाचा-चाची, दादा-दादी का व्योव्यहार। घर-परिवार का माहौल। दोस्तों का माहौल। मंदिर-मस्जिदों का माहौल। रिश्तेदारों का व्योव्यहार। गली-मोहल्ले का माहौल। स्कूल की शिक्षा। शिक्षकों का ज्ञान और व्योव्यहार। उपरोक्त माध्यमों से 15-20 साल तक का होने पर एक मानव लगभग 70-80% तक भर चुका होता है और जो उसके अंदर भरा होता हैं उसके अनुरूप उसके एक्शन निर्धारित होने लग जाते है। मानवों का समाज, एक नए मानव का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और फिर वही मानव अपने कार्यों से उसी समाज का हिस्सा बनकर नए मानवों का निर्माण करने में अपना सहयोग करता है। चोर