मेट्रो का वृतांत
वैशाली से रामा कृष्णा आश्रम तक के लिए मेट्रो ली लक्ष्मी नगर से एक युवक ने दो युवतियों के साथ प्रवेश किया और मेरे समीप आके खड़े हो गए l लड़का ठीक ठाक घर से मालूम पड़ता था और उसके साथ की युवतियों में से एक उसी के समकक्ष परिवेश से मिलती थी लेकिन दूसरी युवती थोडा आर्थिक रूप से कम संपन्न घर से महसूस हुयी l शायद तीनो महाविध्यालय के मित्र थे l युवक ने अपने समकक्ष वाली युवती से पूछा खाने में क्या लायी है और उसने पुलाव कहाँ और युवक ने उसके थेले से उसका खाने का डब्बा निकाल कर खाना चालू कर दिया l वातानुकूलित मेट्रो में खाने की गंध व्याप्त हो गयी और उद्घोषणा होती रही की “कृपया मेट्रो में खाना पीना वर्जित है“ l मन में तो आया की कुछ कहूं लेकिन शायद कीचड़ में पत्थर फेंकने पर खुद पर छीटे आने का आभास हुआ तो मन को समझा कर शांति से खड़ा रहा l इस दौरान उनका वार्तालाप भी जारी था और समकक्ष वाली युवती से युवक अधिक घनिष्टता और प्यार से बात कर रहा था लेकिन जब भी आर्थिक रूप से कम संपन्न घर वाली युवती उस युवक से कोई भी बात पूछती या कहती तो उसका जवाब युवक बहुत ही अपमान जनक स्वर और शब्दों में देता l जैसे की