गुरु या भगवान
पुस्तकों को हमेशा गुरु का दर्ज़ा दिया गया है। पाठ्यक्रम और उसके बाहर जितनी भी पुस्तकें पड़ी है सब ने एक ही सन्देश दिया है की... - ईमानदारी से जीवन व्यतीत करो। - सदैव सच्चाई का साथ दो। - अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाओ। इत्यादि। और माता पिता को भगवान का दर्जा दिया गया है। लेकिन आज के माता पिता समाज से इतना भयभीत है की वह अपने बच्चों और शुभचिंतको को हमेशा यही सलाह देते नज़र आते है की जमाना ख़राब है और... - अगर गलती आप की नहीं भी हो तो बहस करने की जरूरत नहीं माफ़ी मांग कर मामला ख़त्म कर दो। - ईमानदारी घर के अंदर तक ही सिमित रखो, बाहर मौके के हिसाब से चतुराई से काम लो। - कभी किसी को अपनी सच्चाईयों से अवगत मत कराओ। इत्यादि। अब फैसला आपके विवेक पर है की गुरु की बात माने की भगवान की।