साथी की भावनायें
कभी देर से तो कभी जल्दी आ जाना और कभी इंतज़ार में राह तकते रह जाना, असीमित आकांक्षाओं भरे दिलों को सीमित सी जगह में सिकोड़ कर रोज़ आते जाते देखना।
काफी समय से बच्चों को स्कूल ले जाने वाले ऑटो वाले कि मनमर्ज़ीयाँ आर्थिक परिस्तिथियों के आगे नतमस्तक हो रखी थी। आखिरकर एक बीच का रास्ता नज़र आया OLX के रूप में जो हमें इस समस्या रूपी नदी को पार करने में सेतु का कार्य करती।
20-25 हज़ार रुपए के दुपहिया वाहन की खोज शुरू हुई और एक साल पुराने एक्टिवा स्कूटर जिसकी कीमत 45 हज़ार रुपये पर आकर ठहर गयी।
चादर से बाहर निकल रहे आर्थिक पैरों की वजह से जेब बगावत पर उतर रही थी लेकिन वर्तमान दुश्वारियों और दूरगामी फायदे का वास्ता दिला कर जेब को बड़ी मुश्किल से मनाया।
कीमत में कुछ रियायत के आग्रह पर स्कूटर का दाम 40 हज़ार बताया गया तो फालतू की सौदेबाज़ी को दरकिनार कर मैंने भी सहमति दर्ज कर दी।
दूरी दोनो पक्षों के लिए एक चुनौती बन गयी थी, तो आफिस के एक साथी को जो उस क्षेत्र के आस पास से होकर गुजरता था उसको आग्रह कर कहाँ की कृपा करके स्कूटर का मुआयना कर उसकी वास्तविक स्तिथि से अवगत करा दे और एक अन्य साथी को कहा कि स्कूटर लेने जाना है तो अपनी मोटरसाइकिल के साथ वह भी स्वयं तैयार रहे।
अनंत नीले आकाश के नीचे स्कूटर से स्कूल जाते हुए बच्चे। ऑटो के इंतज़ार के लम्हों को अलविदा करते हुए बच्चे। रोजमर्रा के कामों और अड़ोस पड़ोस में आने जाने में होने वाली परेशानियों से निजात पाते हुए हम...और इसी तरह के अनगिनत ख्वाबों को उस वक़्त विराम लगा जब स्कूटर देखने गए साथी ने ये संदेश सुनाया की वह शख्स स्कूटर बेचने के अपने निर्णय को बदल रहा है और अब स्कूटर नही बेचना चाहता है।
बिना ध्वनि के सपनों का ढहना और साथियों को हुए कष्ट का परिणाम सिफर होते देख मन मे ग्लानि और वेदना का एक मिश्रित एहसास हुआ और शायद उस शख्स को इन सब एहसासों का कोई एहसास भी नही होगा।
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