MP3 (भाग - 3)
सोमवार का सूर्य अपने साथ अनगिनत ललिमाओं और आकांक्षाओं के साथ उदय हुआ।
समय से काफी पहले स्कूल पहुँचे, हिम्मत नही हुई की रास्ते में जाकर देखें की सुमन आ रही है की नही। वो आई और प्रार्थना लाइन मे उसकी एक झलक दिखी और किसी तरह का कोई भाव नही दिख। मिश्रित भाव हमारे दिल-दिमागों मे कौंधे।
पहला पीरियड शुरू हुआ और हम तीनो परिणाम की आरज़ू मे खुद को नार्मल रखने की कोशिशों से जूझ रहे थे। कुछ देर बाद देखा की सुमन स्कूल की दहशत कही जाने वाली गुप्ता मैडम के साथ प्रिंसिपल के कक्ष की तरफ बढ़ रही थी। अनहोनी की आशंका से हम तीनों का दिल डूबा जा रहा था, पर एक उम्मीद की किरण ये भी थी की शायद किसी अन्य कार्य हेतु वो प्रिंसिपल कक्ष में गए हो।
जल्द ही एक बच्चा हमारी क्लास में आया और हम तीनों को प्रिंसिपल कक्ष में बुलावे की बात कह गया। शरीर सुन्न और शरीर में उगे हुए बाल और भविष्य में उगने वाले बाल भी त्वचा के अंदर खड़े हो गए। आस-पास की जगह और लोग किसी विचित्र ग्रह से महसूस होने लगे, शरीर के मसानों ने शर्त लगा कर पसीना उगलना शुरू कर दिया।
कुछ क्षणों मे हमने खुद को प्रिंसिपल कक्ष में पाया, जहाँ एक और सुमन अपनी आंखों से सहानूभूति रहित पानी बहा रही थी और दूसरी तरफ प्रिंसिपल मैडम के हाथों में हमारा असफल हो चुका प्रोजेक्ट लहलहा रहा था।
"इसीलिए आते हो तुम स्कूल, यही सिखाया जाता है तुम्हे?"
चटाक चटाक, चटाक चटाक, चटाक चटाक की आवाज़ के साथ हम तीनों के गालों पर छाया सुमन के प्यार रंग लाल होकर दम तोड़ने लगा।
"चलो तीनों इसको बहन बोलो"
गुप्ता मैडम के इन शब्दों को सुनते ही विशाल का चेहरा हमारे आगे उभर आया की ना जाने किन हालातों से गुजर कर उसने सुमन के भाई की पदवी अर्जित करी।
हमें एहसास था की ना-नुकुर किया तो गालों की लाली जल्द ही शोलों मे तब्दील कर दी जाएगी, इसलिए बिना किसी अहम या अकड़ के चुपचाप तीनों ने सुमन को बहन बोल दिया।
ये तो सिर्फ प्रिंसिपल के कक्ष का लिहाज़ था, गुप्ता मैडम का खौफ देखना अभी बाकी था।
जारी है...
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