पार्टी समर्थक

मेरे इर्द गिर्द जितने भी लोग है चाहे वो वास्तविक जिंदगी में हो या फेसबुक, व्हाट्सएप्प जैसी वर्चुअल दुनिया मे, लगभग सबके सब किसी न किसी राजनैतिक पार्टी के समर्थक है।

ज्यादातर लोगों को उस राजनैतिक पार्टी से किसी भी तरह का परोक्ष या अपरोक्ष रूप मे कोई फायदा नही है, लेकिन फिर भी उन्हें लगता है कि शायद जीने के लिए किसी पार्टी का समर्थक होना नितांत जरूरी है वरना वो किस बात को लेकर दोस्तों, रिश्तेदारों व जानकारों से नोक झोंक करेंगे। कोई तो पेंदा लेकर उनको चलना चाहिए, बीने खूंटे की गाय बन के जीवन निरथर्क है।

फेसबुक और व्हाट्सएप्प की दुनिया मे बिना किसी राजनैतिक पार्टी के समर्थक बिना घुसना मानो मरुस्थल में जाने के बराबर हो।

कुछ दिन पहले हुए उत्तर प्रदेश के उप चुनाव के बाद, नतीजे से पहले की रात काटना पाठक जी के लिए दूभर हो गया, बेचैनी और चिंता का आलम ये की रगो से पानी संभला न जाये और पसीना किसी फूटी टंकी से रिस्ता जाए।

इसका कारण वो एक राजनैतिक पार्टी के समर्थक है और कल आने वाले परिणाम पर उनकी नाक की आन बान और शान टिकी थी। हालांकि परोक्ष या अपरोक्ष रूप में उनका पार्टी से कोई लेना देना नही है लेकिन जानकारों के बीच मे उन्होंने उस पार्टी की जीत हार को अपनी जीत हार से जोड़ लिया था।

अगले दिन वोटों की गिनती के साथ पाठक जी की धड़कने ऊपर नीचे हो रही थी। सब कुछ जानते बुझते हुए भी की इस सब से मेरा कोई लेना देना नही बावजूद इसके उनका अपने दिल दिमाग पर बस नही चल रहा था।

परिणाम जो रहा सो रहा, लेकिन पाठक जी को सीख मिली कि अगर ये सब ऐसे ही चलता रहा तो शायद उनकी पार्टी जीत जाए लेकिन इस दौड़ में कहीं उनका हृदय साथ न छोड़ दे।

कोशिश में लगे है कि इस पार्टी समर्थक की भावना को गंभीरता से न लेकिन जहां भी बात होती है वो अपने आपको चाहते हुए भी नही रोक पाते।

कहीं आप भी तो कोई पाठक, यादव, कुरैशी, अम्बेडकर, गांधी, मोदी इत्यादि तो नही...?

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