Posts

Showing posts from March, 2018

सेलेब्रिटी

एक चेहरा जो जनमानस के लिए खास चेहरा बन जाता है वो सेलेब्रिटी कहलाता है और सेलेब्रिटी बनते ही उसके पास कई तरह के ऑफर आने लग जाते है जिस से उस सेलेब्रिटी की आमदनी बढ़ जाती है। ये आमदनी तब तक चलती रहेगी जब तक वो चेहरा खास बना रहे, चेहरे की खासियत खत्म होते ही आमदनी के स्रोत सूखने लग जाते है। एक अच्छी आमदनी शुरू होते है एक चालाक सेलेब्रिटी अपनी एक टीम तैयार करता/करती है जिसे PR Team कहा जाता है, जिसका काम होता है उस सेलेब्रिटी को जनता के बीच मे अच्छे से प्रस्तुत करना वो PR टीम फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे चर्चित सोशल नेटवर्किंग साइट्स अपनी सेलेब्रिटी के लिए अच्छे अच्छे सन्देश बना कर या बनवा कर प्रचारित करते है, इसके लिए बाकायदा या तो नया ग्रुप तैयार किया जाता है या किसी अच्छे खासे ग्रुप को खरीद कर अच्छी सूचनायें प्रेषित की जाती है। ये PR टीम सिर्फ अपनी सेलेब्रिटी को ही चर्चित नही रखता बल्कि विरोधियों को भी बदनाम करता है। तो जो पोस्ट आप फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसी जगहों पर देखते हो और फिर अपनी भावनाओं को उस से जोड़ कर उसमें बह जाते हो वो सब माया से उत्पन्न की गई भावनाय...

चश्मा

फेसबुक पर दो तरह की प्रजातियाँ इस कद्र जुटी पड़ी है जैसे गन्ने के जूस के ठेले के पास भिनभिनाती हुई मक्खियाँ, एक मोदी विरोधी और दूसरी मोदी समर्थक। दोनो एक दूसरे के ऊपर आरोप प्...

सही गलत

मेरा जानकार अगर सफदरजंग जैसे किसी बड़े अस्पताल में काम करता हो और अगर मे उनसे एक डॉक्टर का अपॉइंटमेंट लेने, एडमिट होने या टेस्ट करवाने के लिए बोलता हूँ और वो मदद करने की बजाय ...

मुखोटा

आज के युग मे कहने के लिए एक मानव के पास फोनबुक, फेसबुक, ट्विटर के अन्दर अनगिनत दोस्त है फिर भी उसकी उत्कंठा हमेशा किसी नए दोस्त की तलाश मे रहती है। किसी ऐसे दोस्त की तलाश मे जिस...

कथा एक गाँव की।

एक गाँव मे दो गुट थे जो कि एक दूसरे के घनघोर दुश्मन थे, गाँव के आधे लोग एक तरफ और आधे लोग दूसरी तरफ थे। जब भी युद्ध होता कुछ घरों के लोग अपने परिवारों सहित निजी फायदे के चलते विप...

कानून का डर

कौन कहता है की लोगों मैं पुलिस का डर नहीं है? एक आम आदमी के लिए सबसे डर वाले नाम है "पुलिस, थाना, कोर्ट, कचहरी" और यही नाम उपद्रवियों के लिए "कान पर जू तक न रेंगना" वाली कहावत को सच सा...

खेल ब्रांड का।

बाटा (Bata) ब्रांड से जहाँ मुझे बड़ा अपनापन सा लगता था वहीं मोंटे कार्लो (Monte Carlo) और एलेन सोली (Allen Solly) ब्रांड से परायापन। लेकिन मेरी ये भ्रांति कुछ ही दिन पूर्व दूर हुई, जब पता चला कि Bata विदेशी औ...

गरीबी

- पेडमैन - ये टैक्सी महिलाओं का सम्मान करती है। - बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ। - स्वच्छ भारत अभियान। - रेल व बस आपकी अपनी संपत्ति है, इसको नुकसान न पहुचाये। - कृपया कूड़ा कूड़ेदान में डाले। - यहाँ पेशाब करना मना है। इत्यादि... उपरोक्त सभी हमें इस बात का बोध कराती है कि आर्थिक गरीबी से ज्यादा हम मानसिक गरीब है। #justnegi

True Friendship

"The intensity of foul language used between/among friends indicates the strength of their relationship, the worse is deeper" My above line may be true for most of the people, as I have personally witnessed it and I believe you will agree with me. I found it amazing, how can a relationship be stronger where people are abusing each other and insulting their loved ones without feeling bad at all, though the words used in such relationships hold no actual intention/meaning.  The other side of such relationships may be that I could not understand the way it works or there is some sort of software like part is missing in me, as this foul language system has never converted into a bridge for me where two strangers become friends by following this language system. #justnegi

पलायन

फिसल कर पहाड़ों से हम... समतल हुए जा रहे है। बड़ी समझ इस कदर की हम... बेअक़्ल हुए जा रहे है। छोड़ कर पहचान अपनी हम... बेशक्ल हुए जा रहे है। पछाड़ के खुद को अपनों से हम... सफल हुए जा रहे है। भाया...

सुनने की कला

बोलना हर कोई जानता है चाहे अच्छा बोलना हो या बुरा, मतलब का हो या बकवास, सराहना हो या आलोचना, मतलब बोलने के लिए सब के पास कुछ न कुछ होता ही है अगर नहीं होता है तो कोई सुनने वाला और वो भी ऐसा सुनने वाला जो की सब कुछ समझे और फिर भी सुने और सिर्फ सुने l सुनने वालों की कमी इसलिए है की सुनने वाले की कोई कीमत ही नहीं समझी जाती, जिसको देखो बोलने के लिए हमेशा आतुर रहता है और सुनने वाला जवाब देने के लिए हमेशा उतावला, जब दोनों तरफ केवल बोलने या बढकर जवाब देने की मंशा रहेगी तो बात का हल निकलने की जगह बात और जटिल रूप धारण कर लेगी l सुनने वालों को कमजोर समझा जाना भी एक तरह का भ्रम है लेकिन शायद सुनने की क्षमता या ताकत बहुत कम लोगों में बची है, वो क्या ताक़तवर जो दुसरे की बात सुनते ही अपने दिमाग और जबान को नियंत्रण न कर सके और बदले के लिए उतावला हो जाए l