मुखोटा
आज के युग मे कहने के लिए एक मानव के पास फोनबुक, फेसबुक, ट्विटर के अन्दर अनगिनत दोस्त है फिर भी उसकी उत्कंठा हमेशा किसी नए दोस्त की तलाश मे रहती है। किसी ऐसे दोस्त की तलाश मे जिसे वो शब्दों या दिखावे वाला दोस्त नहीं हमदम वाला दोस्त कह सके, जो उसके जज्बातों, परेशानियों और खुशियों को समझ सके। वो जैसा है वैसा समझ कर दोस्त माने।
ऐसा नहीं है की ऐसे लोगों की दुनिया में कमी है लेकिन वास्तविकता मे इंसान जो है या जैसा है वैसा बन के नहीं रहता। उसे लगता है उसका असली व्यक्तित्व उतना आकर्षित नही है जिससे से वो दूसरे लोगों को आकर्षित कर सके, इस आकर्षण के पीछे अनगिनत उद्देश्य हो सकते है।
जब उसे लगता है कि वो जैसा है वैसा ही रहेगा तो उसे वो तवज्जो नहीं मिलेगी जो की एक नकली आकर्षण वाला मुखोटा लगाकर मिलेगी, इसके चलते वो अनगिनत झूठे मुखोटे लिए घर से निकलता है और उसी की तरह नकली मुखोटे धारण किए लोगों से आकर्षित हो जाता है या आकर्षित करता है, लेकिन कुछ समय मे ही जब उसे नीरसपन, स्वार्थप्रस्ती और परायेपन का एहसास होता है तो फिर हमदम वाले दोस्त की तलाश मे निकल पड़ता है जो की निरंतर चलती रहेगी जब तक हम खुद अपने असली चेहरे से दुनिया मे नही निकलेंगे।
#justnegi
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