कानून का डर
कौन कहता है की लोगों मैं पुलिस का डर नहीं है?
एक आम आदमी के लिए सबसे डर वाले नाम है "पुलिस, थाना, कोर्ट, कचहरी" और यही नाम उपद्रवियों के लिए "कान पर जू तक न रेंगना" वाली कहावत को सच साबित करते है।
इसके पीछे एक ही कारण है और वो यह है की पुलिस का जनता के प्रति रवैया, जो की कागजों मैं मित्र के रूप मैं प्रस्तुत किया जाता है पर असल जिंदगी मैं एक खौफ पैदा करता है।
और इसी खौफ के चलते एक आम आदमी किसी घटना के चलते पीड़ित की मदद करने की बजाय वहां से खिसक जाने मैं ही अपनी भलाई समझता है, उसके खिसकने के पीछे मदद देने से कतराना नहीं बल्कि पुलिस द्वारा किये जाने वाले मदद हेतु अत्याचार होता है, जो की दुर्घटना ग्रस्त के लिए जानलेवा साबित हो सकता है और कई मामलो मैं हो भी जाता है।
पुलिस की कार्य प्रणाली और हमारे आम आदमी का आम होना या यूँ कहे की जागरूक न होना या हिम्मत की कमी या परिस्थितियों की वजह से ये सब होना कब तक चलेगा किसी को पता नहीं, बस दिन कट गया वही काफी है। कल की कल सोचेंगे पर कल जब भी आता है आज बन जाता है और आज हमेशा कल पर टाल दिया जाता है।
बहुत कुछ नेताओं पर निर्भर है और नेता जनता पर निर्भर है तो फिर फैसला जनता ने करना है की एक जून की रोटी के लिए अपना वोट बेच दे या आने वाली पीडी के लिए वोट खरीदने वाले नेताओं को ठुकरा दे।
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