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Showing posts from June, 2010

नेगी जी और नए गायक

नेगी जी ने गढ़वाल की परिस्थितियों, वहां के लोगों की भावनाओं (ख़ुशी, गम, मिलना, बिछड़ना, याद, बचपन, जवानी, बुडापा इत्यादी) को जिस तरह शब्द देकर गीतों मैं पिरोया हैं वह अतुलनीय हैं, उनके जैसे इन्सान को पाकर गढ़वाल धन्य हैं. लेकिन जिस तरह से परिस्थितियां और भावनाए बदल रही हैं उसी तरह लोग भी बदल रहे हैं, लोगो की पसंद भी बदल रही हैं. जो लोग अन्य गायकों के गानों को पसंद कर रहे हैं उनके लीये तो नेगी जी और अन्य गायक बराबर हैं और भविष्य में नेगी जे के आभाव में तो यह नए गायक ही उनके लीये गढ़वाल के उच्चतम गायक बन जायेंगे. भविष्य में जब कल वाली परिस्थितियां और गायक नहीं रहेंगे तो जो भी नया गायक वर्तमान परिश्थितियों और भावनाओं को थोडा बहुत भी अपने गीतों में ढाल पायेगा वही भविष्य का गायक बन जाएगा. भले हम लता, किशोर, रफ़ी जैसे गायांकों को नहीं भुला सकते पर सोनू निगम, उदित नारायण, के. के., सुनिधि जैसे गायकों को भी नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते.

आग और धुआं

बिना आग के तो धुआं नहीं उठता अगर आप गौर करेंगे तो पायेंगे की जितने भी परिवार गाँव मैं विषम परिस्तिथियों में जी रहे हैं उसमें कहीं न कहीं दारु का एक महतवपूर्ण योगदान हैं. गाँव मैं ज्यादातर फौजी रहते हैं और पेंसन आने के बाद अगर उन्होंने कोई काम धंधा कर लिया तो ठीक नहीं तो सिर्फ दारु पिने के लिए जीवित हैं, जिसकी वजह से उनके परिवार वालों को न जाने क्या क्या सेहन करना पड़ता हैं! रोज़गार गाँव मैं कम ही हैं और जो भी हैं वो मेहनत वाला होता हैं ऐसे मैं जब आदमी सारा दिन काम करता हैं और शाम को दारू पर पैसे बर्बाद कर देता हैं तो उसके असर को आप एक परिवार का सदस्य न होने पर भी महसूस कर सकते हैं, ऐसे अनेको उदाहरण आपको हर गाँव में मिल जायेंगे. दारु वैसे तो सभी की एक बहुत बड़ी कमजोरी हैं लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर गढ़वाल में इसके काफी भयंकर परिणाम देखने को मिलते हैं जिसके चलते परिवार का कोई सदस्य प्रगति नहीं कर पाता! अब तो आलम यह हो चूका हैं हे की १० साल का बच्चा भी दारू की गिरफ्त में आ चूका हे और व्यस्क होने पर और अपूर्ण शिक्षा और परिवार के भरण पोसन की जिमेदारी लेकर शहर मैं पहुँचता हैं तो दारु को

वास्तविकता का भविष्य

हम नेगी जी के गानों को पसंद करते हैं क्यूंकि उन्होनो गढ़वाल की उन परिस्थितयों, भावनाओं पर गाने लिखे हैं जिनको हम सब ने देखा और महसूस किया हैं इसलिएवो हम सब के चहेते हैं. गढ़वाल और गढ़वाल के लोग धीरे धीरे बदलते जा रहे हैं साथ मैं परिस्तिथियाँ और भावनायें भी बदल रही हैं, भविष्य मैं जब ऐसी कोई परिस्तिथि और भावनाए नहीं रहेगी जो नेगी जी ने अपने गानों में पिरो रखे हैं तो क्या नयी पीडी को लगेगा की नेगी जी के गानों का वास्तविकता से कोई वास्ता नहीं हैं.

गढ़वाल और जातपात

जातपात का गढ़वाल मैं अपना एक महत्व हैं जो की काफी मजबूत था और अभी भी हमारे बाप दादाओं मैं काफी हद तक अपनी जगह बनाये हुए हैं और हम इस बात को किसी भी रूप मैं ठुकरा नहीं सकते, धीरे धीरे जातपात का असर कम होता जा रहा हैं लेकिन यह शायद कभी ख़तम नहीं हो पायेगा, न केवल गढ़वाल मैं बल्कि पुरे भारतवर्ष मैं. गढ़वाल मैं अपने आप को ऊँची जात का होना और समझा जाना काफी महत्व रखता था और अभी भी काफी लोगों मैं यह भावना भरी हुयी हैं की हम ऊँची जात के हैं और दूसरा नीची जात का, रिश्ते भी जाती के आधार पर बनाये जाते हैं, क्षत्रियों और ब्राह्मणों मैं ही आपस मैं जब जातपात का भेदभाव चलता हैं तो हरिज़नो के साथ यह अपनी उच्चतम सीमा पर होता हैं. आप को क्या लगता हैं की क्या जातपात गढ़वाल से समाप्त हो पायेगा?