आशिफ़ा

तो आशिफ़ा सबकी बेटी थी और उसके साथ हुए अत्याचार से सब आहत है,
आपकी सोच और भावना बिल्कुल जायज़ है।

लेकिन इस पुरुष प्रधान देश मे बलात्कारी किसी का बेटा नही है क्या...?
वो किसी मशीन से उत्पन्न हुआ पुरुष मात्र का शरीर भर है क्या...?

सवाल ये उठता है कि कसूरवार कौन है,  वो बलात्कारी जिसने ऐसा घृणित कार्य किया या उसका परिवार जिसने संस्कारों के रूप में उसके अवचेतन मन मे गलत कार्यों का सही से डर नही बिठाया, जिससे  उसके अंदर ऐसा अपराध करने की सोच उत्पन्न हुई,
या फिर हमारा समाज जिसने उसके अंदर ऐसी लालसा उत्पन्न कर दी कि उसको इस अपराध के पीछे के परिणामों को भी पूर्णतया नज़रअंदाज़ कर दिया।

अगर इसके पीछे वह स्वयं या उसके संस्कार है तो समाज के द्वारा उठाये जाने वाली आवाज़ जायज़ है लेकिन अगर इसमें समाज का योगदान भी सम्मिलित है तो समाज को कोई हक नही की वो सिर्फ बलात्कारी की सज़ा की मांग करे, समाज की मांग उन सब क्रियाकलापो को बंद करने की मांग दुगुनी आवाज़ के साथ उठाने की जरूरत है जो ऐसी घटनाओं की जन्मदाता है। वरना ऐसी घटनाओं में दोषी की सज़ा से ही सार्थकता सिद्ध नही हो जाती बल्कि ऐसी घटनाओं के लिए ये निम्नतम सज़ा सिद्ध होगी।

अगर आप मशीनी मानव नही है तो उम्मीद है आपको पता होगा कि समाज किस और जा रहा है और आपका उसको सुधारने और बिगाड़ने में कितना योगदान है।


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