MP3 (भाग - 2)

बात कायदे के साथ-साथ प्रकृति के संतुलन को ठीक करने की भी थी। हमारे पास तो कोई विकल्प था नहीं तो काफी सोच विचार के बाद ये तय हुआ की एक पत्र लिखा जाए और उस से पुछा जाए की आप किस को पसंद करते हो।

निर्णय तो ले लिया गया पर अब पत्र कैसे लिखा जाता है ये समस्या खड़ी हो गई। सुनील ने मोर्चा संभाला और बोला तेरी लिखाई अच्छी है तो लिखेगा तू और लिखना क्या है ये में बताऊंगा बाकी पत्र को सुमन तक पहुचाने का काम धर्मेन्द्र का होगा।

फैसला हो गया और पत्र लिखा गया जो कुछ इस तरह था की....

प्यारी सुमन, 

आप हमको बहुत अच्छी लगती हो और आपकी मुस्कान तो उस से भी ज्यादा। हम तीनो को आप से प्यार हो गया है और हमें लगता है की आप भी हमसे प्यार करती हो, लेकिन हमें ये नहीं पता की आप हम में से ज्यादा प्यार किस से करती हो।

अगर आप हमें बता दोगी की आप हम से किसे ज्यादा प्यार करती हो बाकी के दो बीच में से हट जायेंगे।

धन्यवाद!

आपके प्रेमी

(नाम नही लिखा था लेकिन सुनील ने अपनी कला का परिचय देते हुए एक दिल बनाया और उसको आर-पार करता हुआ एक तीर भी बना डाला।)

पत्र लिखने के बाद तय हुआ की धर्मेंद्र स्कूल से बाहर निकल कर मौका देखकर पत्र सुमन को दे देगा।
छुट्टी हुई और गेट के रास्ते से बच्चों की भीड़ बाहर निकलने लगी, धर्मेंद्र अपने काम को अंजाम देने सुमन के पीछे जा चुका था और हम आराम से आखिर में बाहर निकले, बाहर निकलते ही धर्मेंद्र खड़ा दिखा और सुमन दूर जाती नज़र आई।

हम - अबे तू यहाँ क्या कर रहा है, जा न उसे दे के आ।
धर्मेंद्र - दे दिया है मैंने।
हम - अच्छा! उसने ले लिया और कुछ नही कहा?
धर्मेंद्र - अरे मैंने स्कूल गेट से बाहर निकलते समय पीछे से उसके बस्ते में घुसा दिया।

अब हम तीनों को चिंता सताने लगी की कहीं वो पत्र उसके घर वालों के हाथ न लग जाए, होमवर्क करने के लिए वो अपनी कॉपी-किताब बाहर निकाले और साथ मे पत्र भी लिपटा हुआ चला आए और उसके घर वाले भी वहीं पर हो और पूछें की ये क्या है तो बस लग गयी लंका समझो।

कोड़ पर खाज वाली बात ये की ये घटना शनिवार को हुई और चिंता से ग्रसित होने के लिए बीच में ईतवार का पूरा दिन और था।

सकारात्मकता तो बाबा भारती के घोड़े पर चढ़ कर बहुत दूर जा चुकी थी और मन खडग सिंह के भय की आशंका से विचलित हुआ जा रहा था।

जारी है...

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