महानगर और गढ़वाल

कल अपने दोस्त के साथ उसकी शादी के कार्ड बांटने निकला तो कई नए गढ़वाली लोगों से परिचय हुआ जो की काफी समय से दिल्ली और आसपास के छेत्रों मैं बसे हुए हैं, गर्मी के ऊपर और दिल्ली के मौसम के साथ कई पहलुओं पर चर्चा हुयी और शहर के साथ गढ़वाल की तुलना की गयी, जिसमें कुछ लोगो ने तो निश्चित कर रखा हैं की रिटायर होते ही वो दुबारा अपने गाँव मैं जा कर बस जायेंगे और इस महानगर के नरकीय माहोल से छुट्टी पा के अपने स्वर्गनुमा गढ़वाल मैं रहेंगे और बाकी की जिंदगी वही बिताएंगे. दिन बा दिन जिस तरह गढ़वाल का माहोल बदलता जा रहा हैं, लोगों मैं आपसी मेलमिलाप घटता जा रहा है हैं और गढ़वाल अपनी मान्यताओं को जिस तरह खोने को आतुर हैं, ऐसी मैं क्या लगता हैं, गढ़वाल का माहोल क्या आज भी पहले की तरह अनुकूल हैं, क्या गढ़वाल मैं दुबारा बसने का उनका निर्णय क्या सही साबित होगा?

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