आधा घंटा

साली साहिबा ने रात को कहा कि कल सुबह ऑफिस जाते समय मुझे गांव वाली बस में बिठा देना या बस तक छोड़ देना।

सुबह पूरा आधा घंटा था मेरे पास ऑफिस के लिए निकलने के लिए तो सोचा चलो आज छोटे को भी ले चलते है बड़े को स्कूल छोड़ने के लिए जाते समय।

जैसे ही बिल्डिंग से नीचे उतर कर बाइक को देखा, पंक्चर टायर ने अपनी अकड़न छोड़ कर नर्म लहज़े से मेरा स्वागत किया और  साथ में छोटे ने भी घर वापस न जा कर बड़के को स्कूल छोड़ने के लिए साथ आने की जिद्द पकड़ ली।

पैदल स्कूल जाने आने में 5 की जगह 15 मिनट लग गए। घर पे पहुँच कर साली साहिबा को खुद ही ऑटो से जाने के लिए कहा और जल्दी से रेडी हो कर बाइक धकेलते हुए पहुंचे पंक्चर वाले के पास।

जो आधा घंटा ज्यादा हो गया था वो इस प्रक्रिया में अपने साथ कीमती आधे घंटे को भी हजम कर गया।

आधे रस्ते पहुँच कर जाम की समस्या देखने को मिली। कुछ लोग गलत साइड से जा रहे थे लेकिन देर होने के बावजूद सीधे रस्ते पर टिके रहे इस उम्मीद में की जाम खुल ही जायेगा। लेकिन 15 मिनट बाद भी जाम न खुलता देख एक लंबे रास्ते की तरफ बढ़ चले ये सोच कर की लंबा सही कम से कम इस जाम से तो जल्दी ही पहुंचेंगे। लेकिन वहां पर भी जाम अपनी भुजायें फैला चूका था। एक और लंबा रास्ता लिया और जैसे तैसे ऑफिस पहुंचे वो भी केवल आधा घंटे की देरी से।

ये वही आधा घंटा था जो पहले फालतू दिख रहा था।

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