गढ़वाली भाषा

जब भी कोई Regional सांस्कृतिक कार्यक्रम होता हैं तो जितने भी उस region से related लोग आते हैं सब का आने का मकसद अलग अलग होता हैं , अधिकतर तो कार्यकर्म देखने आते हैं , बाकी मस्ती के लिए आते हैं .

आयोज़को की तरफ से तो अपनी संसकिरिति के पार्टी शर्धा नज़र आती हैं . ऐसे कार्यक्रम वही आयोजित करते हैं जिनके दिल मैं अपने उत्तराखंड की संकृति के प्रति प्यार और स्नेह होता हैं और उसे अपने लोगों में बांटने की कोशिश करते है .

यह इस बात का एक जीता जगता साबुत हैं की जो अपनी संस्कृति से प्यार करते हैं व्हो उसको बढाने की सोचते हैं किसी न किसी रूप मैं और जो लोग अपनी संस्कृति को पसंद करते हैं ऐसे कार्यकर्मों मैं बड चड़कर हिस्सा लेते हैं .

अगर हम अपनी संकृति को बड़ा नहीं सकते तो कम से कम अपने अन्दर तो जिन्दा रख सकते हैं .

हर चीज़ मैं फायदा नुक्सान और status symbol की तरह देखा जा रहा हैं , यहाँ तक की अपनी मात्र भाषा मैं भी …मुझे लगता हैं की कई लोग ऐसा सोचते हैं की गढ़वाली होने पर गढ़वाली न जानना एक Positive Sign है , या तो वह इंग्लिश बोलने की कोशिश करता हैं या फिर इंग्लिश मिश्रित हिंदी पर गढ़वाली से परहेज़ करता हैं , उसे लगता हैं की गढ़वाली मैं बात करना जैसे कोई मायने नहीं रखता और उसकी बात को परभावी नहीं बनाता, like hindi in Hindustan.

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