जिम्मेदारी

एक दिन ईटों ने मिलकर एक बहुत सुंदर महल बनाने की सोची और फिर सबने मिल कर अपने अपने हिसाब से अपने लिए सही जगह का चुनाव किया, लेकिन जब महल बनकर तैयार हुआ तो न बारिश से बचाव हुआ, न धूप से और न ही आँधी-तूफान से। महल की ऐसी हालात देख कर ईटें महल को कोसने लगी। कुछ समय बाद ईटों को फिर मौका मिला पुराने महल को गिरा कर नया सुंदर महल बनाने का और फिर वही सब हुआ जो पहले हुआ था।

70 सालों बाद भी ईटों रूपी इंसान मिलकर एक ऐसी सरकार/महल का निर्माण नही कर पा रही है जिससे वो संतुष्ट हो सके, अपने आप ही सरकार/महल का निर्माण करती है और अपने आप ही फिर उसको कोसती भी है।

अपनी असमर्थनाओं और कमियों का दोष सरकार/महल के ऊपर क्यों?? अप्रत्यक्ष रूप से तो हम अपने आप को ही भला-बुरा कह रहे है, सरकार/महल मे भी हम ही है और बनाई भी हमने ही मिलकर है, फिर दोष किसी सरकार/महल को क्यो, खुद को क्यों नही?

अपनी उगाई फसल की जिम्मेदारी लेने की जरूरत है, उल्टा फसल को कोसने की बजाय ताकि भविष्य मे हम जो नई फसल पैदा करें वो सही हो और हम अपनी जिम्मेदारी को सराह सके, दोषारोपण करने की बजाय।

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