तुलना

परफेक्ट तो कोई भी नहीं है और न ही कोई हो सकता है लेकिन लोगों की परफेक्शन के करीब पहुँचने की कोशिश लगातार बनी रहती है, इसी कोशिश मे कल का सफल व्यक्ति आज असफल हो जाता है क्योंकि कोई और उससे बेहतर करके सफलता पा चूका होता है

आजकल लगभग हर भारतीय किसी न किसी रूप मे राजनीति से प्रेरित हो चूका है या कर दिया गया है और वो अपने विवेक और ज्ञान की क्षमता के अनुसार दूसरों से अपने विचारों का आदान-प्रदान कर रहा है, बकायदा राजनैतिक पार्टियों ने लोगों को ऐसे ग्रुप व संगठनो से जोड़ लिया गया है जहाँ पर विपक्ष की बुराई और अपनी अच्छाई प्रदर्शित कराई जाती है जो की अधिकतर झूठी होती है, लेकिन भावनाओं मे बहकर अधिकतर लोग सच व झूठ को समझने या जानने की कोशिश नहीं करते

इसी के परिणामस्वरुप जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बने है बहुत से लोग उनकी और उनकी पार्टी की भी निंदा कर रहे है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है अगर निंदा सही वजहों से करी जा रही है तो, जनता को हक है अपने चुने नेता की बुराई या अच्छाई करने का अगर वो नेता उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य नहीं कर रहे हो

लेकिन निंदा भी तभी करी जाती है जब की कोई उससे बेहतर हो जिससे तुलना कर के उनको एहसास हुआ हो की जो मोदी जी या उनकी पार्टी कर रही है उससे बेहतर कोई और कर रहा हो, लेकिन अफ़सोस की निंदा करने वालों के पास इस बात का जवाब नहीं होता की अगर मोदी जी सही नहीं है तो उनके अनुसार कौन सही है राहुल गाँधी, अखिलेश यादव, मायावती या अन्य कोई और? इस सवाल पर उनको ऐसा एहसास होता है की जैसे किसी ने उन्हें अपशब्द कह दिए हो

समर्थक अच्छे भी होते है और बुरे भी, जो अच्छा समझता है उसके लिए उसका नेता किसी दुसरे से बेहतर है और जो बुरा समझता है उसके लिए इस नेता से बेहतर कोई और नेता है क्यूंकि बिना तुलना के किसी परिणाम पर नहीं पंहुचा जा सकता

आप किसी को भी अच्छा या बुरा कहिये लेकिन ये भी तो बताइये की आप किस से तुलना कर के इस निष्कर्ष पर पहुँचे?

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