गुलामी

जो चीज़ एक बार प्राप्त हो जाती है उसकी चाह फिर खत्म सी हो जाती है और भुला दिया जाता है की कितनी शिद्दत और परेशानियों से ये चीज़ प्राप्त हुई थी। फिर नई चीजों के लिए संघर्ष चालू हो जाता है।

आज़ादी का भी वही हाल है, प्राप्त हुई और चाह खत्म। बहुत कम लोग बचे होंगे जिनको पता होगा की गुलामी का दर्द क्या था और आज़ादी की खुशी क्या है, बाकी ज्यादातर को तो ये विरासत में मिली है सो उनको इसकी कीमत का एहसास का न होना भी स्वाभाविक ही है।

अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी मिलते ही हमने अपने आपको नई तरह की गुलामी की जंजीरों से जकड़ लिया है, जैसे की भ्रष्टाचार, कानून व न्याय व्यव्यस्था, बलात्कार, जात-पात, यातायात समस्या, स्वच्छ जल, हवा व भूमि इत्यादि।

लगभग इन सारी की सारी गुलामियों की जड़ हमारी अपनी सोच है, जिसका हल हमारे स्वयं के अंदर से निकलना है लेकिन हम अपने अंदर न झांक कर दूसरे पर उँगलियाँ उठाते फिरते है।

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